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सारा दिन पंछी-सा भटके
शाम हुई डालों से अटके।
अंधकार ने किया जुगाली
सूरज ने ये धूप उठा ली
लगा कि ये तारों के लटके।
ये बादल
वन
ये तनहाई,
पुरवा-पछवा की
महँगाई,
दोस्त ये दुभाषिये निकट के।
आँखों में,
बाँहों में
भर लें,
मौसम को मनोनीत
कर लें,
चाँद कभी आए तो छँट के।
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